ईंतजार की ये घडीयां ना होती तो फिर तन्हायीयों की किमत ही क्या होती?
यादें यदि न होती तरो ताजा तो दिल में तुम्हारी तस्वीर ही ना होती......!
मगरूब हो गया होता मैं भी जमाने कि तरह,
तो आपके किस्मत मे महेबूब की रुस्वाईयां ही होती!
जिंदा है वो मोहब्बत आज भी,
वरना चांद्नी रात मे चातक प्यासी ना होती!
हो गया होता रब हम से दूर,
तो आप हमारी तकदीर ही ना होती!
प्रेम वर्षा से नाचता ना होता मन मयुर,
तॉ आज शाम ईतनी हसीन ना होती!
किया होता यदि फैसला मंझिल पाने का
तो मुकद्दर् भी तुम्हारे हाथ मे होती!
ना रुको तुम, ना झुको तुम, ना मुडॉ तुम,
खुदा के घर देर है अंधेर नही होती!
सिर्फ कलम ही नही कफन भी साथ मे रखा है मैंने,
इस लीये मौत की भी परवाह नही होती!
सच की राह पे चलने वाले होते हैं मौत से भी बे-परवाह
क्योंकि मौत भी रूह की आखरी मन्झील नही होती!
रूह तो आप की भी जिंदा है जनाब ये यकीन है हमें!
वरन आप की पलकों के तले अश्कों की ये माला ना होती!
by Kamalesh Ravishankar Raval on Friday, November 25, 2011 at 2:39pm
COPY RIGHT FOR THIS POEM @ कमलेश रविशंकर रावल
Monday, December 5, 2011
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