Monday, December 5, 2011

एक मैं और एक तुम.........!!!!!!!!!

एक मैं हुं और एक तुम हो और है एक जहां!

क्यों नही मिल पते हम? जब दोनो रहते है ईक जहां!



तडपते हैं क्युं ? तरसते हैं क्युं?

ढूंढते ही उम्र गूजर जायेगी,

और उम्र भर कह्ते ही रह जायेंगे कि-

जाने जां तुम छूपी हो कहां ? मैं तडपता यहां..........!



सूरज की रोशनी भी है, चांद की चांदनी भी है!,

और टमटमाटे तारों की बारात भी है!

पर अन्धेरी रातो में चमकने वाली बिजली है कहां?



कश्ती ब्ही मेरि निकल आयी है पर कर के जीवन का हर तूफान!

पर तूफान मे लडने मे साथ देने वाले वो हाथ हैं कहां?

आसमान भी है, बादल भी है........,

पर प्यार की ओश के वो दो मोती है कहां?



बौछारें भी हैं , बारिश भी हैं......i,

पर उन वादियो की फिझाओं की सर्दी की मझा है कहां?

बाग- ऍ - बहार छायी है वादियों मे ,

हर गूल मेहक रहा है यहां................,

पर ईस सरोवर को गुलिस्तान की नझाकत देने वाला,

कमल खिला है कहां............................... ?



ये कविता मे आई हई किसी परी को समर्पित है........जो पास आ के भी कहीं दूर छूप के मुझे अपने पास के प्यार के दोर से अपने पास खींचे जा रही है पर पास आने से कतरा रही है....!



ऊन की याद आती रही है और आती रहेगी भी......ईस कविता के जरिये मैं उन्हें मै मुझे और न तड्पाने की बिनती कर रहा हुं!







कोपी राईटः कमलेश रविशंकर रावल

एक मैं और एक तुम.........!!!!!!!!!
by Kamalesh Ravishankar Raval on Tuesday, November 29, 2011 at 8:06am

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