Thursday, February 9, 2012
स्पर्श
by Kamalesh Ravishankar Raval on Friday, February 10, 2012 at 12:08pm ·
दिन उम्मीदों में यूँ ही बीत गया...
जिन्दगी का और एक दिन बे-मतलब बीत गया
शाम सूनी थी...सखी तेरे बिन...
नाम जपता रहूँ मैं तेरा रात और दिन...
यादें बची है सिफ अय दोस्त तेरी..
दुनिया तेरे साथ साथ हो गयी है बैरी ....
बह गए हैं इतने आंसू तेरे गम में
की आँखें भी सूख गयी है अब तो मेरी...
भूलने की कोशिश करूँ मैं जितना उन हसीं लम्हों को,
याद आती है तभी की तु ही थी दिलरुबा - मोहब्बत मेरी
जहाँ साथ बिताये थे पल, ज्यादतर तेरी यादों से बसा है..
तेरे जाने से वो चमन भी कुछ उजड़ा -उजड़ा सा है...
गाते नहीं कोयलिया वो अब बागों में तेरे जाने से,
कल तो बागबान भी कर रहा था फरियाद...की ,
पपिहा की भी बोली नहीं सूनी कितने दिनों से,
मैं भी सुना, बगिया भी सूनी , मयूर भी न गाए राग मल्हार...
भरी बसंत में बगिया में नहीं आयी है बाग़-ऐ- बहार ....
रूठी हो तो प्रिये अब तो तुम मान जाओ ...
मेरी पतझड़ सी जिन्दगी में आ के कोई गूल खिला जाओ
पपिहा और कोयल के संग संग आ के प्यार की कोइ रागिनी गाओ
कोरे कागज सी मेरी जिन्दगी में मेघधनुष के रंग भर जाओ..
मेरे अर्ध चेतन शरीर में अपने करिश्माती स्पर्श प्राण दोबारा फूंक जाओ
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