Thursday, February 9, 2012
इश्क ....ईबादत....!
इश्क ....ईबादत....!
by Kamalesh Ravishankar Raval on Thursday, February 9, 2012 at 11:09pm ·
नाराजगी भले दिखा रहे हो हम से,
लूपा छूपी भले वो खेल रहें हो हम से,
हमें भी पता है की उनकी ये रीत अनूठी है..
करार नहीं आता जब उन के दिल को,
तब चूपके से झाँख लेते हैं की सलामत हैं उन का दीवाना ,
डर उन्हें भी रहता है की जल न जाए ओर कोई शमा में उन का परवाना!
इश्क करने वाले तो मिल जायेंगे बहुत ,
पर उन की नादानियत को निभा सकें,
उन की धड़कनों को समझ सकें,
न बोले लब्जों को भी जो सुन सकें ,
मोहब्बत की राह निभा सकें,
और वफ़ा की राह पे चल सकें ,
नहीं मिलेगा "कमल" जैसा इस जहाँ में,
पता है उन्हें भी और जहाँ में सब को..!
प्यासे को पानी के अलावा और कुछ नहीं आता ,
मरीज़ को डॉक्टर के सिवा कुछ नज़र नहीं आता,
बीच समंदर में तूफानों से घिरे हो तब अल्लाह के अलावा ओर कोइ याद नहीं आता
जान जा रही हो तब रब के अलावा आँखों के सामने नज़र नहीं आता,
मुश्किलों में हो जब अपनों के अलावा बचाने कोई नहीं आता,
वो क्या जाने की करते हैं हम उनको कितनी मोहब्बत ,
सुबह शाम उन का नाम ले के करते है आगाज़- ए- ईबादत..
काश वो हमें भी समझ लेते,
नादाँ है हम पर नालायक नहीं,
मोहब्बत कभी मिली नहीं तो पता तो नहीं की,
प्यार करने की भी कोई रीत होती है,
हम तो बस इतना हे समझते हैं की,
रब की सब से बड़ी ईबादत प्रीत होती हैं...!
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